रेवती

on Sunday 3 July 2016
आनर्ताधिपतिरैवत की पुत्री रेवती अपने पिता की प्रिय पुत्री थी। रेवती जब विवाह योग्य हुई तो उसके पिता ने वर खोजने का प्रयास किया। पृथ्वी पर अनेक राजकुमार राजा रैवत ने देखे परन्तु उन सब में कोई-न-कोई दोष अवश्य मिला और इस प्रकार वह सर्वगुणसम्पन्न कोई वर अपनी पुत्री के लिए नहीं खोज सका। राजा रैवत जब स्वयं इस सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं कर सका तो अपनी पुत्री को लेकर ब्रह्म लोक को गये।


ब्रह्म लोक में जाकर ब्रह्मा के सम्मुख राजा रैवत ने अपनी समस्या रखी। प्रजापति ब्रह्म ने यदुकुल में उत्पन्न बलराम को उनकी पुत्री के लिए योग्य वर बतलाया। राजा रैवत ब्रह्मलोक से वापस लौटे और ब्रह्मा द्वारा सुझाये गये वर बलराम को अपनी पुत्री स्वीकार करने का निमंत्रण द्वारका भेजा। बलराम के साथ अपनी पुत्री रेवती का विवाह कर राजा रैवत बद्रिकाश्रम की ओर तपस्या करने को चले गये।


बलराम की पत्नी रेवती लम्बे कद की थी और बलराम उसके सामने कुछ नाटे थे। रेवती पतिपरायणा थी और प्रमादहीन रहकर हमेशा सावधानीपूर्वक वह पति सेवा में तत्पर रहती थी। बलराम अपनी पत्नी का बहुत सम्मान करते थे। पति पत्नी एक-दूसरे को बहुत प्रेम करते थे। बलराम ने जब अपना शरीर छोड़ा तो रेवती ने अपने पति के बिना जीना व्यर्थ समझा और स्वयं काठ की चिता बना कर अपने प्राण प्यारे पति की देह के साथ सती हुई। इस प्रकार रेवती ने पति के साथ सहगमन किया और वह शाश्वत सहचरी बनकर पति के साथ स्वर्ग में पहुँची।


पुरुष यश का स्वप्न देखता है, जबकि नारी प्रेम करने के लिए जागती रहती है।'

-टेनिस (इडिल्स ऑफ दि किंग)

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