गुजरात के चालुक्य
राजा भीम की महारानी उदयमती बड़ी उदार व सहृदया थी। कर्ण नामक राजकुमार इसी का
पुत्र था,
जो अपनी माता के समान उदार व दयावान् तो था किन्तु जब चन्द्रपुर के
राजा की कन्या मयणल्ल देवी से विवाह करने का प्रश्न आया तो कर्ण ने, जो उस समय राजा बन गया था, विवाह करने से इंकार कर
दिया।
राजा कर्ण का मयणल्ल
देवी से विवाह न करने का कारण यह था कि मयणल्ल देवी कुरूप और मोटी थी। रूपवती नहीं
होने के कारण राजा कर्ण को मयणल्ल पसन्द नहीं आयी, वह किसी सुन्दर
राजकुमारी के साथ विवाह करने का इच्छुक था। मयणल्ल ने राजा कर्ण को पति रूप में
स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया था और जब उसने अपनी इच्छा कर्ण के सम्मुख रखी और वह
कर्ण द्वारा ठुकरा दी गई तो उसने चिता में जलकर प्राण त्यागने का निश्चय किया।
राजमाता उदयमती, जो
गुणग्राहक व सुहृदया थी, उसने जब यह सारी बात सुनी तो अपने
पुत्र कर्ण को समझाते हुए कहा-“शारीरिक रूप-सौन्दर्य ही
मूल्यावान् नहीं होता, रूप और सौन्दर्य से भी बढ़कर होता
है-हृदय। हृदय के भावों में ही असली सैौन्दर्य छिपा होता है। बेटा! तुम बाह्य
आकर्षण के प्रति आक्ष्ट होकर यदि नारी की परख कर रहे हो तो यह तुम्हारी बड़ी भूल
होगी। बाह्य आर्कषण से भी ज्यादा महत्व रखता है, नारी के
भीतर का हृदयगत आकर्षण। तुम मयणल्ल देवी जैसी पतिव्रता और समर्पित नारी को
अस्वीकार कर उसे जो तिरस्कृत और निराश कर रहे हो यह उचित नहीं है। राजपूत नारी का
रक्षक होता है और तुम एक नारी जो तुम्हारे शरण में स्वेच्छा से आई उसका परित्याग
ही नहीं कर रहे उसकी मृत्यु (आत्मदाह) के निमित्त भी बन रहे हो। मुझे नहीं मालूम
था कि मेरी कोख से जन्मा पुत्र नारी-सम्मान और नारी-रक्षा का कार्य नहीं कर
पायेगा। मेरे लिए भी अब यही शेष रह गया है कि तुम मयणल्ल से विवाह न करोगे तो मैं
स्वयं चिता में जलकर प्राण दे दूंगी।” माता के कठोर प्रण की
रक्षार्थ कर्ण को आखिर यह विवाह करना पड़ा।
0 comments:
Post a Comment