मिथिला
के राजा जनक के भाई थे कुशध्वज। कुशध्वज के दो पुत्रियां थी-माण्डवी और
श्रुतकीर्ति। राजा जनक ने जब सीता-स्वयंवर का आयोजन किया और राम-सीता का विवाह
सम्पन्न हुआ। उस अवसर पर जनक ने अपनी महारानी सुनयना पर जनक ने अपनी महारानी
सुनयना की कोख से उत्पन्न हुई पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से किया। इसके बाद
अयोध्या से भरत और शत्रुघ्न को बुलवाकर अपने छोटे भाई कुशध्वज की दोनों पुत्रियों
माण्डवी और श्रुतकीर्ति का विवाह किया। बड़ी पुत्री माण्डवी भरत को तथा छोटी
पुत्री श्रुतकीर्ति शत्रुघ्न को ब्याही गयी।
कैकेयी
के कारण राम को वनवास तो हुआ पर राजा दशरथ के संयुक्त परिवार में पुत्रों और
पुत्रवधुओं को लेकर किसी प्रकार का विवाद नहीं हुआ। इतने बड़े परिवार की एकजुटता
का श्रेय इस परिवार की नारियों को ही जाता है। कैकेयी की मांग ने परिवार में एक
विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी पर इस स्थिति को राजा दशरथ के परिवार के हर सदस्य ने
बड़ी संजीदगी से संभाला। राम के वनगमन का अनुगमन सीता और लक्ष्मण ने किया। भरत ने
राज्य अधिकार का परित्याग कर भ्रातृत्व प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत किया।
इस
बदली हुई परिस्थिति में जहाँ कौशल्या, सुमित्रा,
उर्मिला और माण्डवी ने पारिवारिक संगठन को
बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं इस परिवार की सबसे छोटी बहू होने के
नाते श्रुतकीर्ति ने अपने कर्त्तव्यपालन के माध्यम से इसमें पूर्ण योगदान दिया। इस
परिवार की राजपूत नारियों से प्रेरणा लेकर आज क युग की राजपूत नारियां अपनी
पारिवारिक स्थिति को मजबूत बना सकती हैं। श्रुतकीर्ति
के सुबाहू और शत्रुघाती नामक पुत्र उत्पन्न हुए।
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