सुभद्रा

on Thursday 14 July 2016
बलराम की छोटी बहिन सुभद्रा का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था। सुभद्रा की कोख से ही वीर बालक अभिमन्यु का जन्म हुआ था। सुभद्रा वीरोचित गुणों से सम्पन्न थी। वीर और साहस के साथ-साथ वह शरणागत वत्सल भी थी।

गंगा किनारे एक बार सुभद्रा अर्द्ध रात्रि में पर्व स्नान करने गयी। वहां उसने एक राजवेशधारी पुरुष को देखा जिसने अपनी सुन्दर घोड़ी वृक्ष से बांध दी और स्वयं गंगा में डूब कर आत्महत्या करने को तत्पर था। सुभद्रा ने अर्द्ध रात्रि में गंगा किनारे आये पुरुष को पूछा-तुम कौन हो और क्यों डूबने जा रहे हो?”

पुरुष ने सहम कर धीमे स्वर में प्रत्युत्तर देते हुए कहा-मैं अभागा अवन्तिपति दण्डिराज हूं। द्वारिकाधीश कृष्ण मेरी इस अत्यन्त प्रिय घोड़ी का अपहरण करना चाहते हैं। मैं द्वारकाधीश का मुकाबला करने में असमर्थ हूँ और उनके भय से कोई राजा मुझे शरण देने की इच्छुक नहीं अतः मैने आत्माभिमान बचाने के लिए आत्महत्या करने का विचार किया है।

सुभद्रा ने दृढ़ स्वर में अवन्तिपति दण्डिराज को अभय प्रदान करते हुए कहा-मैं तुम्हें शरण देती हूं। मेरे पराक्रमी पति और वीर पुत्र अभिमन्यु तुम्हारी रक्षा करेंगे। कृष्ण मेरे भाई हैं किन्तु इस कारण तुम जरा भी मन में सन्देह न करना। पाण्डवों की शरण में अपने को निर्भय समझो।

दण्डिराज अपनी प्रिय घोड़ी को लेकर सुभद्रा के साथ पाण्डवों के पास पहुँचे। सुभद्रा ने अपने पति अर्जुन को सारी बात विस्तार से साथ बतायी तो अर्जुन ने अपने सखा कृष्ण के साथ युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ बताया। सुभद्रा ने अपने पति को फटकारते हुए कहा-आप राजपूत हैं और राजपूत को धर्म पर स्थिर रहना चाहिए। शरणागत की रक्षा करना राजपूत का प्रथम धर्म है। आप अपने सखा के लिए क्षात्र-धर्म के आदर्शों का परित्याग करना चाहते हैं, यह क्या राजपूतोचित कर्म है? आप यदि अपने साख्य-धर्म का निर्वाह करना चाहते हैं तो सहर्ष करें, आपकी अद्धगिनी वचनबद्ध है और शरणागत की रक्षा के लिए व क्षात्र-धर्म की मर्यादा हेतु मैं स्वयं अपने भाई से युद्ध करूंगी।

अपनी पत्नी की ओजपूर्ण बातें व दृढ़ निश्चय के कारण अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार होना पड़ा। क्षात्र-धर्म के निर्वाह हेतु साख्य-धर्म का परित्याग किया। वकृष्ण ने संदेश भेजकर अर्जुन को दण्डिराज की घोड़ी द्वारका पहुंचाने की सलाह दी पर अर्जुन ने ऐसा नहीं किया। परिणामस्वरूप अर्जुन और कृष्ण के बीच संग्राम होता है और कृष्ण को जब सारी बात का पता चलता है तो वे दण्डिराज को अभयदान देकर अपनी बहिन के प्रण की रक्षा करते हैं। इतना ही नहीं शरण वत्सल अपनी छोटी बहिन सुभद्रा की पीठ थपथपा कर श्रीकृष्ण ने प्रशंसा की।

इस वीर जननी से अभिमन्यु-सा पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने महाभारत के युद्ध में अद्भुत शैौर्य और वीरत्व का प्रदर्शन किया। आचार्य द्रोण के चक्रव्यूह का भेदन कर वह वीर पुत्र वीर गति को प्राप्त हुआ। सुभद्रा जैसी तेजस्वी और गुण सम्पन्न नारी की सन्तति से ही पाण्डु वंश की सन्तति-परम्परा अविच्छिन्न रही।

वचनेन हरति वल्गुना निशितेन प्रहरति चेतसा। मधु तिष्ठति वाचि योषितां क्तदये हालहलं महद्-विषम्। स्त्रियां मधुर वचन से आकर्षित करती हैं और तीक्ष्ण वचन से प्रहार करती हैं। उनके वचन में मधु रहता है। और हृदय में हलाहल नामक महाविष।

-अश्वघोष (सौन्दरनन्द, ८/३५)

 

 

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